न तो कोई भाषा थोपी जाये, और न ही किसी का विरोध होना चाहिए-नायडू


नई दिल्ली।। उपराष्‍ट्रपति और राज्‍यसभा के सभापति एम.वेंकैया नायडू ने देश की सांस्कृतिक, भाषाई और भावनात्मक एकता को मजबूत बनाने के लिए भारतीय भाषाओं के बीच निरंतर बातचीत और विचारों के आदान-प्रदान का आह्वान किया। नायडू ने राज्‍यसभा की हिंदी सलाहकार समिति की आज हैदराबाद में आयोजित ८वीं बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि किसी भाषा की रक्षा और संरक्षण का सबसे श्रेष्‍ठ तरीका उसका लगातार उपयोग करना है। 


उन्‍होंने हिंदी के साथ-साथ सभी भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने का भी आह्वान किया। साथ ही उन्‍होंने यह भी कहा कि हमें सभी मातृभाषाओं या देसी भाषाओं का पूरा सम्‍मान करना चाहिए। भारत जैसे देश में अधिक से अधिक भाषाओं का ज्ञान बहुत लाभकारी है। भारत समृद्ध भाषाई विविधता का देश है। उन्‍होंने इस बात पर जोर दिया कि न तो कोई भाषा थोपी नहीं जानी चाहिए और न ही किसी भाषा का विरोध होना चाहिए। 
 
उप-राष्‍ट्रपति ने हैदराबाद को संस्‍कृति और भाषाओं का संगम बताते हुए कहा कि इस शहर ने तेलुगू के साथ-साथ हिन्‍दी और उर्दू के प्रोत्‍साहन, प्रसार और विकास में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्‍होंने कहा कि त्रिलोक चंद्र शास्त्री, पंडित कृष्ण दत्त, पंडित विनायक राव विद्यालंकार, बद्री विशाल पित्ती और अन्य विद्वानों ने इस क्षेत्र में हिंदी के प्रचार और प्रसार के लिए सराहनीय योगदान दिया है। 


उप-राष्ट्रपति ने कहा कि राज्यसभा की हिंदी सलाहाकार समिति का मुख्य उद्देश्य उच्‍च सदन के दैनिक कार्य में हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देना है। उपराष्ट्रपति ने यह भी सुझाव दिया कि सरल हिंदी शब्दों की एक पुस्तिका या शब्दकोश प्रकाशित किया जाना चाहिए। यह गैर-हिंदी भाषी राज्यों के सांसदों के लिए बहुत फायदेमंद होगा। उन्होंने राजभाषा विभाग से अनुरोध किया कि सरल हिंदी शब्दों के उपयोग के बारे में सांसदों के लिए एक कार्यशाला का आयोजन किया जाये।


 नायडू ने यह सुझाव दिया था कि हिन्‍दी सलाहकार समिति की एक साल में दो बैठकें आयोजित की जानी चाहिए और एक बैठक किसी गैर-हिंदी भाषाई क्षेत्र में होनी चाहिए। आज हैदराबाद में आयोजित यह बैठक उस श्रृंखला की पहली बैठक थी। नायडू ने उम्मीद जताई कि हैदराबाद में आयोजित राजभाषा समिति की यह बैठक दक्षिण भारत और देश के अन्य राज्यों में हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने में मदद करेगी। इसके अलावा इससे भाषाओं में संवाद बढ़ाने और शब्दावली तथा साहित्य को समृद्ध बनाने में भी मदद मिलेगी।