17 नवंबर से पहले अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में आयेगा फैसला, CJI ने दिए ये संकेत!


अयोध्या।। कई दशकों पुराने राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद प्रॉपर्टी विवाद में फैसला 17 नवंबर से पहले आ सकता है। मंगलवार को मामले में सुनवाई के 25वें दिन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने इसके संकेत दिये हैं। सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने सभी पक्षों से पूछा कि वे कितने-कितने दिनों में अपनी बहस पूरी करने वाले है।


संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि अगर एक बार सभी पक्ष ये बता देते है कि वे कितना समय लेने वाले है। तब हमें भी पता चल जायेगा कि फैसला लिखने के लिए कितना समय मिलेगा। 25वें दिन मुस्लिम पक्षी तरफ से दी जा रही दलील के बीच चीफ जस्टिस ने वरिष्ठ वकील राजीव धवन से पूछा कि आप कब तक अपनी बहस पूरी करने वाले है। आपको बहस करने के लिए और कितना वक्त चाहिए? साथ ही कोर्ट ने हिंदू पक्ष से भी पूछा कि उन्हें मुस्लिम पक्ष द्वारा दी गई दलील पर अपना पक्ष रखने के लिए कितना समय चाहिए? इस पर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा, मैं पूरी कोशिश करूंगा कि समय से बहस पूरी होकर फैसला आये।
 
गौरतलब है कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। लिहाजा संविधान पीठ दशकों पुराने इस विवाद पर इससे पहले फैसला सुना सकती है। इसके पहले मंगलवार को मुस्लिम पक्ष की तरफ से वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने बहस की शुरुआत करते हुए विवादित स्थल से मिले खंभों पर पाए गए निशान का जिक्र करते हुए दलील दी कि सिर्फ इस वजह से यह साबित नहीं हो सकता की वह इस्लामिक नहीं है। धवन ने कहा कि मस्जिदें केवल मुसलमानों द्वारा ही नहीं बनाई गई थीं। ताजमहल का निर्माण सिर्फ मुसलमानों ने नहीं किया था। इसमें मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदाय के मजदूर शामिल थे।


धवन ने कहा, 'सवाल यह है कि ये पिलर कौन से हैं। ईश्वर की छवि का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है। उन्हें (हिन्‍दू पक्षकार) वह दिखाना होगा...यह कसौटी कहां से आई और इन्हें कौन लाया?' धवन की इस दलील पर जस्टिस अशोक भूषण ने याद दिलाया कि सिंह द्वार के स्तंभ पर एक द्वारपाल की छवि पाई गई थी। जस्टिस भूषण ने कहा कि वर्ष 1528 में एक पिलर को जय-विजय का द्वार बताया गया है। वे पिलर फोटोग्राफ में हैं, आप इस कैसे देखते है?इस पर राजीव धवन ने कहा कि वह फोटो देखने के बाद इसके बारे में बतायेंगे। 


जस्टिस भूषण ने कहा कि हिंदुओं का कहना है कि ये मंदिर के खंभे थे। धवन ने कहा कि खंभे मंदिर के थे ये अलग तथ्य हैं। इस पर हम अलग से बहस कर सकते है। इस पर जस्टिस भूषण ने पूछा कि इन खंभों के बारे में हाईकोर्ट में क्या बहस हुई यह बताइए। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इन पिलर्स पर जो चित्र और आकृतियां बनी हुई हैं, उस पर हिन्‍दू अपनी आस्था साबित कर रहे हैं। इसके जवाब में धवन ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं कि ये लोग (मुस्लिम समुदाय) लेकर आए थे। खंभे जो भी लगे थे हमने लगाए थे। खंभे पर भगवान के चित्र नहीं हैं। कमल और आकृतियां हैं जो वास्तुशिल्प हैं। इसपर जस्टिस बोबडे ने पूछा कोई ऐसा साक्ष्य है, जिसमें ऐसी मूर्तियां मस्जिदों में बनी हैं। इसपर राजीव धवन ने कुतुबमीनार का उदाहरण दिया, लेकिन निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कहा कि कुतुबमीनार में जैन मंदिर था। वहां जैन मूर्ति है। इस पर जस्टिस बोबडे ने कहा कि हम इस केस की बात कह रहे हैं।