UPSIDC: नियम-कानून ताक पर रखकर नौकरी पाने वाला बर्खास्त लेकिन फर्जी आदेश से नियुक्त अफसर को प्रमोशन

 


उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम (यूपीएसआईडीसी) में नियम-कानून को ताक पर रखकर मैनेजमेंट ट्रेनी के पर नियुक्त भ्रष्ट मैनेजर श्याम सिंह को बर्खास्त कर दिया गया है। मजे की बात यह है कि मैनेजमेंट ट्रेनी का पद निगम में सृजित ही नहीं है। यह खबर upkiran.org में प्रकाशित होने के बाद निगम में हड़कम्प मच गया। upkiran ने भ्रष्टाचार के इस खेल की खबर सबसे पहले प्रकाशित की थी। इसका असर अब सामने आ रहा है। उच्च अधिकारियों ने फर्जी नियुक्ति के इस प्रकरण में अपनी गर्दन फंसती देख बर्खास्तगी की कार्रवाई शुरू कर दी। इस प्रकरण के बाद अब निगम के अंदरखाने में ही प्रबंध निदेशक राजेश कुमार सिंह के निर्णयों पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं।मैनेजमेंट ट्रेनी के पद पर नियम-कानून ताक पर रखकर सिर्फ श्याम सिंह ही नहीं बल्कि इसके अलावा अन्य चार और नियुक्तियां भी की गयी हैं। ऐसे में सिर्फ श्याम सिंह को बर्खास्त करने पर सवाल उठना लाजमी है।


इसके अलावा इलाहाबाद मे मैनेजमेंट ट्रेनी के पद से आये क्षेत्रीय प्रबंधक विधि बीके सिंह, इसी पद पर वर्तमान में कार्यरत मंजरी गुप्ता विधि प्रशिक्षु, मयंक श्रीवास्तव पूर्व क्षेत्रीय प्रबंधक लखनऊ एवं वर्तमान में प्रबंध निदेशक कार्यालय कानपुर से सम्बद्ध हैं। इनकी नियुक्ति भी मैनेजमेंट ट्रेनी के पद पर हुई थी। जिसे बाद में नियमित कर दिया गया। इसी तरह संजू उपाध्याय की भी इसी पद पर निगम में नियुक्ति हुई थी। अब इन सभी पर भी गाज गिरना तय है।


आपको बता दें कि मयंक श्रीवास्तव वो जाना माना नाम है जिसने यूपीएसआईडीसी में भ्रष्टाचार को स्थापित किया। शासन-प्रशासन भले ही लाख दावे करे की नियम-कानून सबके लिये बराबर होता है लेकिन ये नियम-कानून तब धरा का धरा रह जाता है जब मयंक श्रीवास्तव जैसे भ्रष्ट ऑफिसर की बात आती है। वैसे तो यूपीएसआईडीसी भ्रष्टाचार को लेकर अक्सर सुर्ख़ियों में रहता है।


जानकारी के मुताबिक बिना विज्ञापन भर्तियों की यूपीएसआईडीसी में शुरुआत सर्वप्रथम तत्कालीन प्रबन्ध निदेशक राजीव कुमार द्वारा की गई। उन्होंने मयंक श्रीवास्ताव की बिना विज्ञापन नियुक्ति करके इस परम्परा की शुरुआत की। मयंक की नियुक्ति मैनेजमेंट ट्रेनी के रुप में 1991 में 2500 रुपये प्रतिमाह पर कर दी गई।


जबकि महामहिम राज्यपाल के द्वारा यूपीएसआईडीसी के स्वीकृत स्टाफ स्टैण्ड में मैनेजमेनट ट्रेनी का कोई भी पद सृजित ही नहीं है। इतना ही नहीं इस नियमविरुद्ध की गयी नियुक्ति को शासन के दबाव में उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास निगम के सर्विस रूल का उल्लंघन करते हुये इन्हें निदेशक मंडल की बैठक में उप-प्रबन्ध के पद पर नियुक्ति दे दी गयी।


जबकि सर्विस रूल के अनुसार लागू सेवा नियमावली के अनुसार, उप प्रबन्धक सामान्य का पद 50 प्रतिशत सीधी भर्ती से और 50 प्रतिशत प्रमोशन से भरे जाने वाला पद है। गौरतलब है कि इस पद पर मृतक आश्रित के रूप में किसी प्रकार की नियुक्ति नहीं की जा सकती। इसके उपरान्त भी निदेशक मंडल की बैठक में इस प्रस्ताव को पास करवाकर मयंक श्रीवास्तव की नियुक्ति कर दी गई। नियुक्ति के बाद मयंक श्रीवास्तव ने क्षेत्रीय प्रबन्धक गाजियाबाद में डिप्टी मैनेजर पद पर कार्य करते हुये उन भू-खंडों का आवंटन कर दिया जो भूखंड आज भी UPSIDC के कब्जे में नहीं है। जिसकी जांच आज भी निरंतर चल ही रही है। इस प्रकरण में इन्हें तत्कालीन यूपीएसडीसी प्रबन्ध निदेशक द्वारा निलंबित किया गया।


सूत्रों की मानें तो निलंबन के साथ-साथ 76 भूखंडों के फर्जी आवंटन के लिए मयंक श्रीवास्तव पर FIR करने के आदेश भी दिए गए लेकिन मामले को दबा दिया गया और एफआईआर दर्ज नहीं हुई। बाद में पुनः इन्हें बहाल कर दिया गया। बहाली के बाद मयंक श्रीवास्तव की फिर से महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती दी जाने लगी और पूर्व की भांति निगम में भ्रष्टाचार के नए कीर्तिमान बनाने में जुट गए। मयंक के विरुद्ध फाइलों में जाँच चलती रही, कोई कार्रवाई तो नहीं हुई उलटे मयंक को निदेशक मंडल की बैठक के द्वारा डिप्टी मैनेजर का अवार्ड जरूर दे दिया गया गया।


मयंक श्रीवास्तव की यूपीएसआईडीसी में नियुक्ति को लेकर एक बड़ा झोल है। मयंक श्रीवास्तव की नियुक्ति मृतक आश्रित में बताई जाती है जबकि मयंक श्रीवास्तव के पिता कभी यूपीएसआईडीसी में रहे ही नहीं। उनकी मृत्यु जब हुई तब उनकी तैनाती बतौर विशेष सचिव गृह शासन में थी। इतना ही नहीं वो कभी औद्योगिक विकास विभाग में नहीं रहे।


मयंक श्रीवास्तव की नियुक्ति को लेकर जो जानकारी सामने आयी है वो भी बेहद चौंकाने वाली है। निगम सूत्रों की मानें तो मयंक श्रीवास्तव की नियुक्ति शासन के तथाकथित एक फर्जी आदेश के क्रम में हुई थी जिसकी पुष्टि शासन ने कभी भी नहीं की और न ही इसका कोई अभिलेख शासन में उपलब्ध है। यहीं नहीं मयंक की नियुक्ति के बाद उसे सीधे डिप्टी मैनेजर के पद पर कर दी गयी जबकि डिप्टी मैनेजर के पद पर सीधे नियुक्ति का कोई प्रावधान ही नहीं है।


 


 


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