उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार में गृह विभाग में विशेष सचिव गृह के पद पर तैनाती के एक माह बाद ही सचिव बनाये गये IAS अफसर को लेकर हुए खुलासे के बाद भी अभी तक किसी प्रकार कोई कार्रवाई न करने से योगी सरकार कि कार्य प्रणाली को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं। एक IAS ऑफिसर जिसने ईमानदारी का चोला ओढ़ रखा था, उसका फर्जीवाडा सामने आने के बाद सरकार द्वारा पहले उसे आयुष विभाग में सलाहकार बनाया गया फिर उसके कुछ ही माह बाद उसे रेरा जैसी महत्वपूर्ण अथोरिटी में सलाहकार बना दिया गया। ये सारेकारनामे सीएम योगी आदित्यनाथ कि नाक के नीचे हुआ। रिटायर्ड IAS ऑफिसर मणि प्रसाद मिश्रा द्वारा किये गये इस कृत्य ने देश की सर्वोच्च सेवा को ही संदेह के दायरे में ला दिया है।
आपको बता दें कि मणि प्रसाद मिश्रा को प्रदेश सरकार के गृह सचिव के पद से बुधवार 30 नवंबर 2016 को तीन माह के लिए सेवानिवृत्ति के बाद OSD पदेन सचिव पद पर पुनर्नियुक्ति दी गयी थी।
तब से लगातार IAS मणि प्रसाद मिश्रा की सेवायें बढ़तीं गयी। सरकार बदली लेकिन मणि प्रसाद अपनी जगह बने रहे। हालाँकि भाजपा सरकार में उनका सिर्फ एक बार ही कार्यकाल बढ़ाया गया लेकिन इस अफसर ने हिम्मत नहीं हारी और नई गुणा-गणित में लगे रहे।
सूत्रों की मानें तो उन्होंने अधीनस्थ चयन सेवा आयोग के अध्यक्ष बनने के लिए सारे घोङे खोल दिये लेकिन आयोग में अध्यक्ष की घोषणा के बाद मणि प्रसाद की ये उम्मीद धरी की धरी रह गयी। उसके बाद उच्च शिक्षा चयन आयोग के नये चेयरमैन की घोषणा के बाद एक बार उन्हें तगड़ा झटका लगा।
सेवानिवृति के बाद अभी कुछ माह ही बीते हैं कि IAS अफसर मणि प्रसाद मिश्रा का एक ऐसा कारनामा सामने आया कि जिससे नियुक्ति विभाग से लेकर भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय पर भी सवाल खड़े हो गए। मणि प्रसाद मिश्रा जब सेवा में आये तब से लगातार उनकी जन्मतिथि 1.02.1956 समय-समय पर ग्रेडिशन लिस्ट में छपती रही।
यहाँ तक कि IAS में प्रमोट होने के बाद भी उनकी जन्मतिथि 1.02.1956 ही रही। लेकिन फिर अचानक 2016 की ग्रेडिशन लिस्ट में मणि प्रसाद मिश्रा की डेट ऑफ़ बर्थ 1.12.1956 हो जाती है। यानि मणि प्रसाद की नौकरी आश्चर्यजनक तरीके से सीधे-सीधे 10 महीने बढ़ जाती है।
इस सम्बन्ध में जब नियक्ति विभाग के अधिकारियों से संपर्क कर जानकारी चाही गयी तो सभी लोगों ने स्पष्ट से कहा कि विभाग द्वारा जारी ग्रेडिशन लिस्ट को कोई त्रुटि संभव ही नहीं क्योंकि जारी करने से पहले इसका टेंटेटिव जारी किया जाता है।
उसके बाद पूरी छानबीन के बाद ही लिस्ट जारी की जाती है। छानबीन से ये तो स्पष्ट हो गया कि ग्रेडिशन लिस्ट में छपी सीनियारिटी लिस्ट में इस तरह की त्रुटि संभव ही नहीं। तो फिर ऐसे में ये सवाल उठता है कि क्या देश की इस सर्वोच्च सेवा में भी इस तरह की हेराफेरी हो सकती है।